चार इमली के सरकारी
आवास में हम करीब 20 सालों तक रहे. पतिदेव के रिटायर होने के समय हम 25 दिसम्बर 2015 को बागमुगलिया एक्सटेंशन के
अपने निजी आवास में शिफ्ट हो गये. हमने घर से लगा हुआ ही एक आउटहाउस बनवाया है
ताकि हम किसी ऐसे परिवार को रख सकें जिसे काम की ज़रुरत हो और जो उम्र के इस पड़ाव
पर ज़रुरत पड़ने पर हमारे काम भी आ सके और हमारी अनुपस्थिति में हमारे घर की देखभाल
भी कर सके.
एक प्यारा सा परिवार
हमारे यहाँ रहने आया. तीन लड़कियों और एक लड़के के साथ एक अकेली माँ का परिवार. दो
सालों पहले उसके पति का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था. पति एक ऑटो ड्राइवर था
पर कमाई अच्छी खासी हो जाती थी. बीवी को उसने बहुत अच्छे से रखा. वो औरत जिसे कभी घर
की रानी बना कर रखा गया था और घर की दहलीज़ के बाहर किसी काम के लिये कभी कदम नहीं
रखने दिया गया था, आज पति के निधन के बाद बच्चों का पेट पालने के लिये दर दर काम
की तलाश में भटक रही थी. अनपढ़ होने के कारण घरों में झाड़ू, पोंछा और बर्तन का काम
करने पर मजबूर थी वो. उसके सभी बच्चों में कोई ना कोई टैलेंट है- उस समय बी. कॉम.
द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत 19 वर्ष की बड़ी बेटी “नेहा” थोड़ी टॉम बॉय टाइप, पढाई में अच्छी
और बाहर के कामों के लिये हमेशा तत्पर, 18 वर्षीय शांत, मृदुभाषी और थोड़ी शर्मीली मँझली
बेटी “रोशनी”, पढाई में ठीक ठाक पर ब्यूटी पार्लर और घर के कामों में निपुण, दसवीं
में पढ़ रहा 16 वर्षीय बेटा “सचिन” जिसका पढने में बिल्कुल मन नहीं लगता पर स्वादिष्ट चायनीज
व्यंजन बनाने और पाक कला में कुशल और मात्र 9 वर्षीय उसकी सबसे छोटी बेटी “महक”- भाई-बहनों
में सबसे दुलारी, अपने नाम के अनुरूप महकती और चहकती हुई, रंगोली बनाने में माहिर
और बातों में चैटर बॉक्स. तीनों बहनें मेंहदी लगाने में दक्ष. इन सबमें माँ ही
गुणों में कमजोर नज़र आती लेकिन उसकी ताक़त इसमें थी उसने इतने बड़े हादसे के बाद भी
बेटियों की पढ़ाई जारी रखी और अन्य लोगों की तरह उन्हें बाहर काम करने को नहीं धकेला. खुद
कमाती रही और किसी तरह खर्च निकलती रही.
अप्रैल 2016 में वो हमारे यहाँ आये थे.
मई के अंत में हमें पता चला कि महक पहले अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ती थी पर
पिता की अचानक मृत्यु के बाद पैसे के अभाव में उसे म्युनिसिपलिटी के एक हिंदी
माध्यम स्कूल में डाल दिया गया था. उसका वहाँ बिल्कुल मन नहीं लगता था. कई बार
रोती थी वो, ये कहकर कि उसे इस स्कूल में क्यों डाला गया. उसे पैसों की कमी की
बातें समझ नहीं आती थी. तब मैंने उसे अपने पास बुलाया था. उससे बात की थी. उसने
मुझे भी अपनी इच्छा बताई थी. उसे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ना था.
मेरे दिल ने तब मुझसे
कहा- अपने पास ईश्वर का दिया इतना तो है ही कि इस बच्ची की इच्छा पूरी कर सकूं. और
मैंने तय कर लिया कि इसकी अंग्रेजी माध्यम स्कूल की शिक्षा का भार मैं उठाऊँगी.
क्या पता अच्छी शिक्षा पाकर एक बड़े मुकाम पर पहुँच कर ये अपने परिवार को संभाल ले
और अपनी माँ की वो सारी इच्छायें पूरी कर सके जो पिता के असमय मृत्यु से अधूरी रह
गयीं थी. मैंने घर में सबसे बात की और मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि घर में सभी ने मेरे
इस निर्णय का खुल कर सम्मान और स्वागत किया.
अगला सवाल था - “कौन
सा स्कूल?”. इस सवाल का जवाब मैंने महक से ही माँगा. आखिर पढ़ना तो उसे ही था. माँ
की इच्छा थी कि उसे पास के ही एक स्कूल में डाला जाये ताकि आने जाने में सहूलियत
हो. मैं उसे कार में अपने साथ बिठा कर कुछ दिन 4-5 स्कूलों में घूमी. क्यूंकि वो दो सालों से
हिंदी माध्यम स्कूल में पढ़ रही थी इसीलिए बहुत बड़े नाम वाले स्कूल उसे दाखिला नहीं
देने वाले थे. पर क्या बड़ा क्या छोटा, पढ़ने वाले कहीं भी अच्छा कर लेते हैं.
आख़िरकार उसे एक
स्कूल पसंद आया. उसके टीचर्स से बात करके देखा मैंने. अच्छी क्वालीफाइड और
अंग्रेजी बोलने वाली टीचर्स थी वहाँ. बस मैंने उसका दाखिला वहाँ पाँचवीं कक्षा में
करवा दिया, किताबें और यूनिफार्म भी दिलवा दिये. बहुत खुश थी महक उस दिन. उसकी माँ
की आँखें ख़ुशी से नम थीं.
पर अब दूसरा सवाल
उठा. दो साल के गैप के बाद अंग्रेजी से उसका नाता टूट चुका था और यहाँ सारी
किताबें अंग्रेजी में थी. इस गैप को कौन पूरा करेगा? मिसिंग लिंक्स कौन जोड़ेगा?
और तब मेरी छोटी
बेटी शान सामने आई. उसने सहर्ष इसका बीड़ा उठाया. रोज उसके साथ बैठती. राइटिंग,
ग्रामर, स्पेलिंग, उच्चारण, शब्दों के मतलब, वाक्य रचना, सवाल जवाब... क्या-क्या
नहीं सिखाया उसने महक को. होम वर्क भी देती और उससे मेहनत करके सीखने को भी कहती.
एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज के लिये भी शान ने उसे गाइड किया और प्रोत्साहित
किया. शान की मेहनत और महक की लगन रंग लाने लगी. महक हर फील्ड में मेडल और ट्राॅफी
लाने लगी और फाइनल परीक्षा में अव्वल आई. हमें हमारा पुरस्कार मिल चुका था. उसके
चेहरे की मुस्कान और उसकी माँ के चेहरे पर झलकते गर्व के रूप में.
अभी 26 जनवरी को उसके स्कूल में
गणतंत्र दिवस के उत्सव पर महक ने अपने सहेलियों के साथ मिलकर गोलगप्पे की स्टाॅल
लगायी थी. मुझसे भी आने का आग्रह किया था. वहाँ जाकर उसकी प्रिंसिपल और क्लास टीचर
से मिली. सभी उसकी बहुत तारीफ कर रहे थे. उसके लिये विशेषणों का अम्बार लगा दिया था.
बहुत गर्व महसूस हो रहा था मुझे. वो फिर तिमाही परीक्षा में अव्वल आई थी. बेटियां
ऐसी ही होती हैं.
उस दिन का इंतज़ार है
जब उसके नाम और ख्याति की महक दूर-दूर तक पहुंचे. पहले मेरी दो बेटियां थी. अब
पांच हैं. हमसे भाग्यशाली कौन होगा. भगवान करे ये सभी अपने जीवन में ऊँचे मुकाम पर
पहुंचे और हमारा आँगन इनकी खिलखिलाहट से हमेशा गुंजायमान रहे.