आज बहुत दिनों के
बाद ब्लॉग लिख रही हूँ. सोचा दुबारा शुरुआत इस मजेदार घटना से करूँ.
2009 में मेरी बड़ी
बेटी स्वाति ने मुझे ये साड़ी उपहार स्वरुप दी थी. तब वो बैंगलोर यानि आज के
बेंगलुरु के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से एमबीए कर रही थी. ये एक बहुत ही खूबसूरत बैंगलोर
सिल्क की साड़ी थी. मुझे बहुत पसंद थी ये साड़ी. उस समय से आज तक मैंने इसे जब भी
मौका मिला तब तब पहना.
अभी हाल में ही
मैंने इसका ब्लाउज आल्टर करवाया. तब टेलर ने मुझसे कहा था कि ब्लाउज का कपड़ा बहुत कमजोर
हो गया है. मैंने भी सिर हिलाकर हामी भरी थी. सिल्क अक्सर पसीने के कारण कमजोर हो
भी जाता है.
14 मार्च 2019. उस दिन यूनिवर्सिटी
में एक वर्कशॉप थी और एक प्रेरणादायक संभाषण भी. सोचा आज रेगुलर सूट को छोड़कर
फॉर्मल ड्रेस में जाया जाये. वही साड़ी निकाली. जब ब्लाउज निकालने लगी तो टेलर की
बात अचानक याद आ गई. फिर एकदम से दिमाग में कौंधा – कहीं ये साड़ी भी तो कमजोर नहीं
हो गयी है? साड़ी पहनी, उठ कर, बैठ कर देखा. साड़ी ठीक रही. इसीलिए अगले ही क्षण ये
ख्याल दिमाग से निकाल दिया. तैयार होकर यूनिवर्सिटी आ गयी.
वर्कशॉप शुरू होने
में समय था. सोचा, कुछ काम कर लूं. काम निबटा कर वर्कशॉप जाने को उठी. साड़ी को ठीक
करने के लिए थोड़ा आगे पीछे देखा. लगा कि लेफ्ट साइड में कुछ धागे निकल रहे हैं.
कभी किसी चीज़ में कपड़ा अंटक जाये तो धागे खिंच ही जाते हैं. सोचा कहीं ऐसा ही हो
गया होगा. उसे ठीक करने के लिए फिर कपड़े में हाथ लगा कर, उसे दबा कर हथेली से धागे
को ठीक करना होता है. वैसा ही करने की कोशिश की तो समझ में आया कि माज़रा तो कुछ और
ही है. ये तो पूरी साड़ी ही लम्बाई में ऊपर से नीचे तक चिर चुकी थी. साड़ी फॉल के
कारण निचला हिस्सा बच गया था. ये बायीं ओर ऊपर से नीचे तक हुआ था.
अब ऐसी साड़ी में दिन
कैसे गुजारूं? अभी तो बस शुरुआत ही हुयी थी उस दिन की.
कोई और विकल्प नहीं था,
घर जाने के सिवा. बस कार में बैठूं और घर चली जाऊं. पर बहुत इच्छा थी वर्कशॉप में
शामिल होने की. अच्छी वर्कशॉप थी. नयी जानकारी मिलती. उसे छोड़ने का मन नहीं हो रहा
था. कुछ देर पेशोपेश की स्थिति रही फिर मन बना लिया – घर नहीं जाना, वर्कशॉप अटेंड
करना है.
फिर क्या था, अपनी
महिला सहकर्मियों से मदद ली. सेफ्टी पिन्स का जुगाड़ किया गया. ज्योति मैडम और पूजा
ने इसमें मदद की. ज्योति मैडम ने तो कुछ इतने अच्छे तरीके से पिन्स लगायीं कि एकबारगी समझना मुश्किल था कि साड़ी फटी हुयी है. फिर भी उसे ढंकना तो जरूरी था.
ऑफिस में मैं हमेशा पल्ले
प्लेट्स डाल कर, पिनअप करके पहनती हूँ. क्यूंकि फॉलिंग पल्लू इनफॉर्मल लगता है. पर
आज जरूरत उसी फॉलिंग पल्लू की
लग रही थी. पल्लू लटकायी गयी. उसे घुमाते हुए दूसरे हाथ से पकड़ा गया ताकि जो हुआ
था उसे छिपाया जा सके. पल्लू पकड़े चल पड़ी वर्कशॉप में. उस दिन वर्कशॉप के दो सेशंस
अटेंड किये. कैंटीन में लंच की व्यवस्था थी. काफी चलकर वहां भी गयी. एक घंटे के
व्याख्यान में भी शामिल हुयी.
कुछ करीबियों को तो सच्चाई बताई पर बाकियों को क्या पता था कि इस फैशन के पीछे का सच क्या था और कितने जतन से बैठना पड़ रहा था मुझे वर्कशॉप में.... रोबोट बने हुए, ज्यादा हिलना-डुलना नहीं.... क्यूंकि आगे
साड़ी और फटती तो छुपाना नामुमकिन हो जाता. इस रोबोट को एक और कॉम्प्लीमेंट मिला था
उस दिन, “मैडम को देखो, कितनी ध्यान से बिना हिले-डुले लेक्चर सुन रहीं हैं मैडम.
हमसे तो होता ही नहीं.”
अब उन्हें कौन बताता कि उस दिन मैंने फटी साड़ी में वर्कशॉप अटेंड कर ही लिया था.
पूरा दिन भी बिता लिया था. शायद ही ऐसा कहीं और हुआ हो.