अस्तित्व - मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये
ये कहानी है मेरे फ्लैट लेने की.. जहाँ कुछ भी नहीं था वहां से एक फ्लैट की मालकिन बनने की. हौसला हो और कुछ कर दिखाने के जज़्बा, तो कुछ भी संभव है
बात 2009 की है.
हमारी शादी की सिल्वर जुबिली एनिवर्सरी पर हमारे जेठ जी (भैया) और मेरी
जिठानी(दीदी) दिल्ली से यहाँ भोपाल हमारे पास आये थे. उस दौरान हमने थोड़ा बहुत
भोपाल भ्रमण भी किया. भैया को भोपाल बहुत पसंद आया और उन्होंने ये इच्छा जाहिर की
कि रिटायरमेंट में बाद यहीं भोपाल में सेटल होना चाहते हैं. कारण दो थे, एक तो
भोपाल की शांति, हरियाली और यहाँ का माहौल और दूसरा एक भाई और उसके परिवार का (हमारा)
भी यहीं पर होना. हमने पहले ही 1999 में एम पी हाउसिंग बोर्ड का एक डुप्लेक्स ले
लिया था हालाँकि उस समय हम सरकारी बंगले में रह रहे थे क्यूंकि हमारा ये घर शहर से
थोड़ा दूर था और इस तरफ ज्यादा डेवलपमेंट भी नहीं हुयी थी.
भैया के रिटायरमेंट
में कुछ देर थी. 4 साल बाद यानि 2013 के अक्टूबर में उन्हें रिटायर होना था. तो
हमें कुछ फ्लैट्स या मकान देखते रहने को कहा गया ताकि कुछ अच्छा लगे तो उन्हें खबर
किया जा सके.
मुझे ऐसे कामों में
बड़ा मज़ा आता है. तो बस लग गयी मैं भैया के लिए घर ढूँढने के काम पर. पहले भोपाल के
नामी बिल्डर्स का पता किया फिर उनके प्रोजेक्ट्स का. 2011 में भैया दीदी पुनः
भोपाल आये और इस बार मकसद था घर फाइनल करना. जो कुछ घर मैंने शार्टलिस्ट किये थे उन्हें
देखने हम निकल पड़े. सब कुछ देखकर एक नतीजे पर पहुँचना था ताकि जब दो ढाई साल बाद
भैया यहाँ आयें तो अपने घर में आ सकें.
एक जगह कुछ अच्छा तो
दूसरी जगह कुछ और. कहीं रूम के साइज़ पसंद नहीं आ रहे थे, कहीं हाउस का प्लान. आखिर
कर हम वहां पहुंचे जहाँ हमारी बात पक्की होनी थी और उनका सैंपल फ्लैट देखा. 3 बीएचके
फ्लैट्स, बिल्ट अप एरिया और कारपेट एरिया भी काफी था और कमरों के साइज़ भी अच्छे
थे. ऐसा नहीं कि एक डबल बेड लगा दो तो आस पास चलने की जगह ही न बचे रूम में.
ड्राइंग रूम और डाइनिंग कम लिविंग स्पेस भी काफी अच्छा. तीन तीन वाशरूम्स भारतीय
शैली और वेस्टर्न शैली दोनों में. प्लानिंग काफी अच्छी थी. और उससे भी ज्यादा आकर्षित
किया हमें उसके इंटीरियर ने. बहुत ही खूबसूरत इंटीरियर. वाल पेपर से लेकर, बिस्तर,
सोफे, सेण्टर टेबल, डाइनिंग टेबल, डेकोरेशन सब जबरदस्त. लग रहा था सभी उसी समय
शिफ्ट कर जायें वहां.
सैंपल फ्लैट तो सभी
को पसंद आया था. वो 3 बीएचके था. भैया ने तय किया कि वो 2 बीएचके लेंगे. मुझे तो कुछ भी नहीं
लेना था. पर ये सैंपल फ्लैट मेरे मन में इतना बस गया था कि मैंने भी इसे लेने का मन
बना लिया. अब तो मुझे लेना था और यही वाला लेना था. उसके डिटेल्स लिए. किस्मत से
हम वहां तब गए थे जब 3 दिनों का ऑफर चल रहा था कि जो भी इन तीन दिनों के भीतर
फ्लैट बुक करेगा उसे मॉड्यूलर किचेन फ्री दिया जायेगा. तो भाई हमें तो बुक करना था
इसे. एक कहावत है न “घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने” बस वही स्थिति थी. एक
प्राइवेट नौकरी, छोटी सी तनख्वाह पर ख्वाब बड़े. ख्वाब को और बड़ा बनाया मैंने... फ्लैट
मुझे पूल फेसिंग ही चहिये था और एक कवर्ड पार्किंग भी चाहिए थी. हाहाहा. सबके अलग
से प्राइस जुड़ते गए फ्लैट की प्राइस में. कहा गया कि बुकिंग तीन दिनों के अन्दर
करवानी है. और बुकिंग राशि.. 10% फ्लैट के प्राइस की. घर चले हम. रास्ते में मेरे
पतिदेव ने पूछा, “क्या कर रही हो? कहाँ से लाओगी इतना पैसा?” उन्होंने आश्चर्य
मिश्रित भाव से मुझे देखा और हंसने लगे. मुझपर तो जैसे इन सबका कोई फर्क नहीं पड़
रहा था. बल्कि मेरी फ्लैट लेने की इच्छाशक्ति और दृढ होती जा रही थी. कैसे होगा,
क्या होगा, पैसा कहाँ से आएगा, ये सब सोचे बिना मैंने उत्तर दिया.. हो जायेगा सब.
फ़िलहाल परेशानी ये
नहीं थी कि आगे क्या होगा, परेशानी ये थी कि अभी वो 10% कैसे जमा होगा. पापा हमेशा
मेरे पथ प्रदर्शक भी रहे और उन्होंने हमेशा से मेरा उत्साह वर्धन भी किया. उन्हें
जब ये खबर सुनाई तो वो बहुत खुश हुये और फिर मैंने जब झिझकते हुए बुकिंग राशि की
बात की तो कहा, बस इतनी सी बात, मैं इन्तजाम कर देता हूँ. तुम आगे बढ़ो. और पापा ने
मेरी इस समस्या का हल तो कर दिया.
अब आगे बात थी कि
लोन कैसे लिया जाये? प्राइवेट नौकरी थी, जिसकी कोई सिक्यूरिटी नहीं होती. तनख्वाह
भी कुछ ज्यादा नहीं थी. कौन सा बैंक मुझे कितना लोन दे सकता था अब ये देखना था.
मुझे तो ज्यादा से ज्यादा लोन लेना था इसीलिए उस बैंक का चुनाव करना था जो ज्यादा
से ज्यादा लोन मुझे दे सके.
तीन अलग अलग बैंकों
में गयी. आपकी तनख्वाह पर कुछ कैलकुलेशन की जाती है कि उसमें से आप महीने में खर्च
कितना करेंगे, कितना बचा पायेंगे ताकि आप लोन की किश्त भर सकें, और कितने साल में
आप लोन की राशि चुकायेंगे. इन सबका आंकलन करके उसमें से तीनों ने जो राशि मुझे ऑफर
की उनमें सबसे ज्यादा लोन देने वालों से बाकि दोनों में 3 और 1 लाख का अंतर था. अब
जिसने मुझे सबसे ज्यादा लोन देने का आश्वासन दिया था उसके पास गयी. भैया दिल्ली
लौट चुके थे. उनके लोन के बारे में बात करने का जिम्मा मेरे पतिदेव का था, तो वो
भी मेरे साथ गए.
लोन लेने में भी
अजीब बात है. आपको जरूरत है, आपके पास पूँजी नहीं है, इसीलिए आप लोन लेने गए हैं,
और बैंक में आपसे उल्टा सवाल किया जाता है कि आपके पास क्या क्या है. यानि कि आपके
पास कम से कम उतने ही राशि की अचल सम्पति या फिर जेवर होने चाहिए. अब मेरे पास तो
वैसा कुछ था नहीं. अगर था भी तो लोन की राशि का करीब 20%. तो वो मेरे पतिदेव की और
मुखातिब हुए. उनसे पूछा “आप क्या करते हैं?” मैं भड़क गयी. पलट कर मैंने कहा, आप
इनसे क्यूँ पूछ रहे हैं कि ये क्या करते हैं? उन्होंने जवाब दिया “ताकि ये आपके
गारंटर बन सकें”. मैंने उनसे कहा, जब इन्होने घर के लिए लोन लिया था तब मुझे तो
गारंटर नहीं बनाया गया. अब इन्हें मेरा गारंटर क्यूँ बनाना है? जवाब था मेरी नौकरी
का प्राइवेट होना. मैंने कहा, “मेरी गारंटी कोई नहीं देगा. सारे तथ्य आपके सामने
हैं. आपको लोन देना है तो दें नहीं तो मत दें”. अपेक्षित यही था कि अब मुझे यहाँ
से निकलना है बुकिंग कैंसिल करवानी है और बुकिंग राशि वापस लेनी है. पर हुआ
अनापेक्षित. उन्होंने कहा, ठीक है आप फॉर्म भर कर दे दीजिये हम आपको सूचित करते
हैं.
पता नहीं बैंक वालों ने क्या देखा या क्या सोचा, उन्होंने मेरा लोन एप्लीकेशन ले लिया. मैंने बिलकुल मना कर
दिया था कि मेरे लिए कोई भी गारंटर नहीं होगा और किसी भी डॉक्यूमेंट पर मेरे सिवा
मेरे पति या किसी और के हस्ताक्षर नहीं होंगे. ये भी मान लिया गया.
कई दिनों तक कोई
सूचना नहीं आई. बैंक गयी तो पता चला कि वो प्रोजेक्ट और बिल्डर्स की छानबीन कर रहे
हैं ताकि ये सुनिश्चित हो जाये कि दोनों हर तरह से सही हैं, कोई फर्जीवाड़ा नहीं
हैं. हमारी ही सुरक्षा की बात थी. देर आये पर दुरुस्त आये.
मैं इस बीच बिल्डर
के पास भी गयी. उन्होंने गहरी सांस भर कर बताया, “मैडम ये बैंक वाले हमसे कितने
पुश्तों के कागजात मांग रहे हैं” और उन्होंने मुझे वो मोटी सी फाइल भी दिखाई
जिनमें ढेर सारे डाक्यूमेंट्स थे जिनकी बैंक ने मांग की थी. साथ साथ मुझे एक दो
बैंकों के नाम सुझाये और वहां से लोन लेने को कहा. दरअसल हर प्रोजेक्ट के साथ कुछ
बैंक जुड़े होते हैं और बिल्डर्स चाहते हैं कि हम उन्हीं में से एक से लोन लें ताकि
उनको सहूलियत हो. दुर्भाग्यवश मेरा बैंक उनके बैंक लिस्ट में नहीं था इसीलिए
छानबीन कुछ गहरी हो रही थी. मैं अपने बैंक के चुनाव पर अडिग रही. मुझे बिल्डर की
सहूलियत नहीं, अपने पैसों की सुरक्षा देखनी थी.
एक साल यूँ हीं बीत
गया. इस बीच में तीन बार मुझसे सैलरी स्लिप की मांग की गयी. मेरा उस समय का ऑर्गेनाईजेशन
कभी किसी को सैलरी स्लिप नहीं देता था. एक बार बैंक के लिए माँगा था तो मुझे
उसपर ये लिखकर मिला था कि ये सिर्फ बैंक के काम के लिए है. अब बार बार बैंक द्वारा
उसकी मांग करना उनके मन में ये शक पैदा कर रहा था कि कही मैं उसका इस्तेमाल किसी
और जगह नौकरी ढूँढने में तो नहीं कर रही. बैंक से लोन मिलेगा कि नहीं, ये तो
निश्चित नहीं था पर मेरी नौकरी का जाना अब सुनिश्चित होता दिख रहा था.
लोन मिल जायेगा तो उसका 20% मुझे भी चुकाना होगा, हालाँकि किश्तों में और साथ
साथ फ्लैट के कीमत की बची हुयी राशि भी चुकानी होगी. अब गंभीरता से बैठ कर इसपर भी
विचार करना था. पूरी कैलकुलेशन करनी थी. तो लग गयी मैं अपने गणित के ज्ञान के साथ.
स्कूल में पढ़े हुए प्रतिशत, ब्याज सब याद आ गए. हाँ, इसमें दसवीं के बाद का गणित
काम नहीं आता. सारी सेविंग्स खंगाल ली गयी. हर जरूरी कागजात का मुआयना किया गया.
कहते हैं न, बूँद बूँद से घड़ा भरता है. शादी के साढ़े छब्बीस साल बीत गए थे और
नौकरी करते हुए 18 साल. फिर बिल्डर के कार्य पूरा करके देने के अगले 36 महीने,
यानि 3 साल भी. गणना के हिसाब से लग रहा था कि बात बन जाएगी. फिर मेरा घर के राशन
पानी में कौन सा ज्यादा पैसा लगना था. फालतू खर्च करने की मेरी आदत नहीं थी. फिर
भी जो थोडा बहुत इधर उधर खर्च हो जाता था उसपर थोड़ी रोक लगानी थी. दिल ने कहा “हो
जायेगा” और मैंने भी माना “हो जायेगा”. इतना तय था कि किसी से अब पैसा नहीं लेना
है.
लोन मिलते मिलते 1 साल हो गया. तब तक मेरी भी NIT की पीएचडी प्रवेश परीक्षा
क्लियर हो गयी थी फ़ेलोशिप के साथ. नौकरी से स्टडी लीव लेकर पीएचडी ज्वाइन कर ली
मैंने. अब तो बहुत ज्यादा फ़ेलोशिप मिलती है पर जब मैंने ज्वाइन किया तब ये रीविजन
नहीं हुआ था. मेरी फ़ेलोशिप की राशि मेरी सैलरी से आधी हो गयी थी. उसपर परेशानी ये
कि मुझे हाउस रेंट अलाउंस(HRA) भी नहीं मिल रहा था क्यूंकि मैं पति के नाम पर मिले
सरकारी आवास में रह रही थी. तो सीधा सीधा नुकसान. एक तरफ NIT में पीएचडी दाखिले की
ख़ुशी, दूसरी तरफ ईएमआई भरने की चिंता. ये तो शुक्र की बात थी कि डेढ़ साल तक मुझे
पूरा ईएमआई नहीं भरना था और सिर्फ ब्याज की राशि अदा करनी थी पर पीएचडी तो लम्बी
चलनी थी. फिर मेरी कार की भी ईएमआई साथ साथ थी.
पतिदेव ने एचआरए की रकम के हर्जाने को अपने सर लिया और मेरी कार कि ईएमआई का 75
प्रतिशत और पेट्रोल का खर्च अपने जिम्मे लिया. गाड़ी चल पड़ी पर रह रह कर मुझे लगता
कि बाद में मुश्किल आएगी और मैं लोन की राशि नहीं चुका पाऊँगी. लिहाजा छः महीने
बाद ही मैं पहुँच गयी बिल्डर के पास और उससे कहा कि मेरी बुकिंग राशि वापस कर दे,
मैं फ्लैट नहीं खरीदना चाहती. उसने मेरी बात सुनी और मुझे समझाया कि अगर मैं फ्लैट
छोडती हूँ तो वो तो उसे ज्यादा कीमत पर किसी और को बेच देगा पर मैं अगर उसी फ्लैट
को वापस लेना चाहूँ तो मुझे वो बढ़ी कीमत पर मिलेगा या फिर बिक गया तो मिलेगा भी
नहीं. उसने मुझे कुछ दिन और सोच विचार कर लेने को कहा. मैं उसकी बात मानकर वापस तो
आ गयी पर उससे कहा कि वो मेरे नाम से चेक तैयार रखे, मैं कभी भी लेने आ सकती हूँ.
वापस आकर मैंने अपनी एक सहकर्मी से बात की. उसके पति लोन से सम्बंधित कार्य ही
देखते थे. उससे पूछा कि अगर मैं लोन नहीं चुका पाई तो उस स्थिति में क्या होगा?
सीधे पूछा, “कहीं मुझे जेल तो नहीं जाना पड़ेगा”? उसने कहा नहीं, उस स्थिति में
बैंक आपके फ्लैट को बेचकर अपना पैसा चुका लेगा. बस आपके तब तक की जमा की हुयी
ईएमआई की राशि डूब जाएगी. आपको पैसे वापस नहीं मिलेंगे.
“जेल नहीं जाना पड़ेगा” सुनकर कुछ तो राहत मिली, सोचा चलने देते हैं.
दो साल बाद पीएचडी की स्कॉलरशिप राशि में रीविजन हुआ. दो साल बाद स्कॉलरशिप की राशि वैसे भी थोड़ी बढ़नी थी कुछ और भी बढ़ी. काम थोडा आसान हुआ पर कब तक? साढ़े तीन साल बीतते बीतते पीएचडी तो खत्म हो गयी. पुरानी संस्था, जिससे स्टडी लीव लेकर पीएचडी करने आई थी, उसने वापस नौकरी पर सादर बुलाया मुझे, पर वो पुरानी तनख्वाह ही देने की पेशकश कर रहे थे. पीएचडी के बाद तनख्वाह क्यूँ बढ़नी चाहिए, ये उनकी समझ से परे था. अब आप ही बताइये, साढ़े तीन साल बाद आ रही थी, वो भी NIT से पीएचडी करके, भला पुरानी तनख्वाह पर क्यूँ काम करती?
स्कॉलरशिप की बढ़ी राशि से कुछ जमा किया था, 6-7 महीने तो ईएमआई के लिए इंतज़ाम था, पर उसके आगे नौकरी जरूरी थी. कई जगह अप्लाई किया, और कुछ जगह से पॉजिटिव रिस्पांस भी आया. फिर अपनी इस संस्था को ज्वाइन किया. उसके बाद अपनी गाड़ी सामान्य तरीके से चलती रही.
तीन साल बाद फ्लैट तैयार हो गया पर उस ज़मीन पर कुछ सरकारी स्टे लग गया था. उसे
हटने में एक साल और लग गया. 2016 में फ्लैट मेरे नाम किया गया. किस्मत से मेरी
चाची सास और जेठ जिठानी थे उस समय मेरे साथ और बड़ों के आशीर्वाद के साथ मैंने उस
फ्लैट का रिबन कटा और उसमें प्रवेश किया.
कुछ और बातें तो करने को रह ही गयी. शायद ये बातें आपको भी कुछ प्रेरणा दे.
जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया कि मैंने फ्लैट में अलग से कुछ राशि जमा की
थी पूल साइड फेसिंग फ्लैट और कवर्ड पार्किंग के लिए. पर जब मैंने फ्लैट की बालकनी से
बाहर झाँका तो मुझे पूल की जगह क्लब हाउस की छत दिखाई दी. तिरछी गर्दन करके 45
डिग्री के कोण में देखो तो दूर पूल दिखाई देता. बस चली गयी इस मुद्दे को लेकर कि
मेरे पूल साइड फेसिंग की राशि वापस करो. HR वालों ने थोथी दलील पेश करके हरसंभव
प्रयास किया कि क्लब हाउस फेसिंग को पूल साइड फेसिंग बता सकें पर मुझे मूर्ख बनाने
क़ी उनकी सारी कोशिशें बेकार रही. मैनेजमेंट के बड़े अधिकारी से मिली और फिर
उन्होंने मेरी बात समझी. उन्होंने कहा कि पैसे वापस करना तो मुश्किल है पर उसके
बदले में आप बताइये हम क्या कर सकते हैं. फिर उसके बदले में मैंने क्या करवाया पता
है? ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम में फॉल्स सीलिंग.
एक और बात हुयी. मेरा किचेन मॉड्यूलर नहीं था. मुझे याद आया और जैसा मैंने
शुरू में आपको भी बताया कि शुरुआत में प्रचार के समय जो लीफलेट बिल्डर ने बनवाया
था, उसमें एक तिथि का तीन दिन का रेंज दिया हुआ था कि इस बीच में जो फ्लैट बुक
करेगा उसे मॉड्यूलर किचेन फ्री बनाकर दिया जायेगा. किस्मत से इस लीफलेट को मैंने संभाल
कर रखा हुआ था. अपनी बुकिंग राशि जमा करने की और बुकिंग की तारीख देखी. उसी बीच की
थी. पुनः बात की बिल्डर से और फिर से सफल हुयी जो होना ही था क्यूंकि प्रूफ जो था
मेरे पास. मॉड्यूलर किचेन भी बन गया मेरा.
तो अब मैं फ्लैट की मालकिन हो गयी थी. कितनी ख़ुशी हो रही थी इसका शब्दों में
बयां मुश्किल है. पतिदेव भी गर्व कर रहे थे मुझपर.
लेकिन लोन तो बीस साल का लिया था, वो भी सिर पर से हटाना था. इतने साल इतनी
राशि दे डाली थी पर लोन का आउटस्टैंडिंग बैलेंस तो बिलकुल कम होता दिख ही नहीं रहा
था. मेरी बैंकर बड़ी बेटी ने कहा कि मूल राशि कम कटती है, ब्याज ज्यादा इसीलिए ऐसा
हो रहा है. मूल बाद में ज्यादा कटना शुरू होगा. तो बस चुप चाप ऐसे ही सिलसिला चलता
रहा.
इस बीच दो बार सरकार की नीति के अनुसार महिलाओं के लिए ब्याज दर कम होने पर
ब्याज दर को 10.5% से 8.5% करवाया और फिर 7%
फिर 3 साल पहले मेरे छोटे भाई ने मुझे सुझाया, “क्यूँ नहीं तुम, जितना पैसा
तुम्हारे पास बचता है, उसे लोन अकाउंट में जमा कर देती हो. ऐसे भी तुम्हें जमा
खाता से क्या ब्याज मिलने वाला है. इससे अच्छा है, लोन जल्दी चुकाओ”.
उसकी बात दिमाग में पूरी तरह घर कर गयी. बैंक जाकर पता किया, समय पूर्व लोन की
राशि जमा कर देने से कहीं कोई पेनाल्टी तो नहीं लगेगी. उत्तर मिला, “नहीं”.
अब घर की दाल रोटी तो चलानी नहीं थी. तो महीने के कुछ खर्च के बाद जो भी
तनख्वाह बचती वो मैं लोन खाते में डाल देती. इससे हुआ ये कि बीस की जगह दस साल में
मेरा लोन चुकता हो गया. 13 मार्च 2022 को सिर ऊँचा करके लोन देने वाले बैंक शाखा
से “नो ड्यूज” का सर्टिफिकेट लिया और फिर 15 मार्च 2022 को हेड शाखा से जाकर अपने
मकान के कागजात लिये. कुछ दिन बाद 7 अप्रैल 2022 को उसी गर्व से उठे हुए सिर के
साथ रजिस्ट्री ऑफिस गयी और अपने फ्लैट का हस्तांतरण अपने नाम करवाया जो अब तक बैंक
के पास था. सब खुद किया अपने बलबूते पर. उस दिन ख़ुशी के आंसू छलक आये थे, खुद पर
विश्वास नहीं हो रहा था.
एक बड़ी अजीब सी बात थी, जब “नो ड्यूज” और फ्लैट के कागजात के लिये गयी तो दोनों
जगह बैंक वालों ने तीन बार पूछा, “और कौन है जिसने आपके साथ लोन लिया”? मैंने बार बार कहा, “मैंने”. उन्होंने
याद दिलाया, “आपके हसबैंड भी तो होंगे न आपके साथ”.
क्यूँ आखिर क्यूँ?
क्या हम महिलाएं बिना किसी की मदद के कुछ नहीं कर सकते. ये पुरुष प्रधान
मानसिकता आखिर कब बदलेगी?
बहुत ही भाव विह्वल होकर घर लौटी. पतिदेव के सामने शान से खड़ी हो गयी. उसी शान
से कहा, “मैंने कर दिया, हो गया घर मेरे नाम, चुका दिया सारा लोन... और वो भी अपने
बलबूते पर”.
कहना नहीं होगा कि पतिदेव भी मुझपर नाज़ कर रहे थे और उतना ही गर्व महसूस कर रहे
थे. उन्होंने मेरी पीठ ठोकी और मुझे “लेडी विथ ऐन आयरन विल” का ख़िताब भी दिया.
मेरी छोटी बेटी जो उस समय हमारे साथ ही थी, वो भी भावुक हो गयी. बेटी ने इस
उपलक्ष्य में एक बड़ी भी पार्टी दी. उसने जो बोला वो मेरे लिए एक अतुल्य स्मृति
है. अगर आप मेरे इस फेसबुक पोस्ट को देखें
तो इसमें वो विडियो मौजूद है जो उसने कहा.
पापा आज होते तो अपनी बेटी पर बहुत गर्व कर रहे होते। मुझे पता है वो जहाँ भी हैं वहाँ से ही मुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे।
3 दिन बाद ही मेरा साठवां जन्मदिन भी था. यानि कि इस उम्र में भी मैंने वो कर दिखाया
था जो बहुत लोगों के लिये असंभव होगा. सच है “ मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान
लीजिये”. खुद पर विश्वास बहुत जरूरी है और खुद का साथ भी. फिर देखिये सपने कैसे
पूरे होते हैं. मैंने भी तो पाया था अपना एक “अस्तित्व”.