Saturday, 12 September 2020

 


"पराकाष्ठा - द पॉजिटिव वाइब्स"



ये ब्लॉग मेरे बच्चों और मेरे सभी विद्यार्थियों को समर्पित है. उनके साथ के अनुभव ने ही मुझे इस मुकाम पर पहुँचाया और उन्हीं की बदौलत मैं इस ब्लॉग को ये शीर्षक दे पाई

प्रस्तुत ब्लॉग को मैं दो सवालों से शुरू करुँगी और इसके माध्यम से दो पहलुओं पर बात करना चाहूंगी.

  1. आपको अगर घर की चाभी किसी को देकर जाना हो तो किसे देकर जायेंगे?
  2.  क्यूँ?

 जाहिर है कि आप पहले प्रश्न के जवाब में कहेंगे – जिन्हें हम अच्छे से जानते हैं और दूसरे प्रश्न के जवाब में कहेंगे- क्यूंकि उनपर हमें भरोसा है.

आपका जवाब सही भी है. हम अपने घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें ही तो सौंप सकते हैं जिनपर हमें पूरा भरोसा हो.

लेकिन अगर हम दूसरे पहलू पर गौर करें तो हम जब भी किसी परीक्षा या साक्षात्कार के लिए जाते हैं तो हमें हमेशा ही ऐसा लगता है कि हम रह जायेंगे और कोई दूसरा हमसे बाज़ी मार ले जायेगा. हम दूसरों को खुद से ज्यादा सक्षम समझते हैं और दिमाग में हमेशा यही होता हैं कि कोई और हमसे ऊपर होगा या हमारा चयन न होकर किसी और का चयन होगा. आखिर क्यूँ? ऐसे समय में परिस्थितियां विपरीत क्यूँ हो जाती हैं? हम उनपर ज्यादा विश्वास क्यूँ जताने लगते हैं, जिन्हें हम जानते तक नहीं? जन्म से लेकर हर एक उम्र तक हम चौबीस घंटे खुद के साथ रहते हैं, खुद को सबसे अच्छी तरह से जानते हैं, फिर सफलता की चाभी दूसरे के हाथ क्यूँ सौंपने लग जाते हैं. खुद पर भरोसा क्यूँ नहीं करते?

अंग्रेजी में कहते हैं: Believe in Yourself

फिर ये belief ऐसे समय में कहाँ चली जाती है?

चलिए मैं अपनी एक आपबीती सुनाती हूँ सिर्फ ये बताने के लिए कि अगर खुद पर भरोसा हो तो सबकुछ संभव है:

1999 के दिसम्बर में मेरे पतिदेव ऑस्ट्रेलिया के एक सरकारी दौरे से लौटे. बीच में लम्बा ले ओवर था सिंगापुर में. वहां से बच्चों के लिए कुछ इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स लेकर आये. भोपाल आकर सिंगापुर की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. वहां की सुन्दरता, सफाई, नियम पालन, लोगों की जागरूकता, ईमानदारी और बहुत कुछ की. उनके मुँह से सिंगापुर की इतनी तारीफ सुनकर मैंने उनसे अनायास ही कहा, “मुझे भी ले चलिए न सिंगापुर”. जवाब कुछ ऐसे मिला, “तुमने तो मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया. इतने पैसे मेरे पास होते तो तुम सबको ले जाता. मैं तो सरकारी खर्चे पर गया था”. उस समय न छठे पे कमीशन वाला वेतनमान लगा था न ही कुछ बचत हो पाती थी. उनका मायूस चेहरा देखकर बस मैंने यूँ ही उस दिन कह दिया था, “चिंता मत कीजिये, अब मैं आगे आपसे कभी ऐसा नहीं बोलूंगी. पर सिंगापुर जाउंगी जरूर और अब ऊपर वाला मुझे सिंगापुर ले जायेगा”. बात आई गयी हो गयी. यहाँ मैं अपनी तारीफ में कुछ शब्द बोल दूं कि मैं बहुत ही नॉन-डिमांडिंग बीवी रही हूँ.

2004 में नवभारत अख़बार में एक प्रतियोगिता का ऐलान हुआ. RANK & BOLT अवार्ड का. RANK अवार्ड विद्यार्थियों के लिए और BOLT अवार्ड शिक्षकों के लिए. BOLT यानि ब्रॉड आउटलुक लर्नर टीचर अवार्ड. ये प्रतियोगिता एयर इंडिया और सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जाने वाली थी. सभी ऐसे लोगों के लिए, जो शिक्षण के कार्य से जुड़े हों-चाहे वो स्कूल में हो, कॉलेज में या फिर कोचिंग इंस्टिट्यूट में और चाहे वो टीचर हों, प्रोफेसर हों, डायरेक्टर, प्रिंसिपल, रजिस्ट्रार या फिर वाइस-चांसलर. सभी इसमें हिस्सा ले सकते थे. दो स्तर थे इसके. जिला स्तर और राज्य स्तर. अगर आप जिला स्तर के विजेता होते हैं तो आपको शील्ड और सर्टिफिकेट मिलेगा और अपने राज्य के सभी जिला स्तर के विजेताओं से मुकाबला करके राज्य स्तर पर जीतने का मौका भी. और अगर आप राज्य स्तरीय विजेता घोषित होते हैं तो अन्य पुरस्कारों के साथ साथ अपने राज्य के टीचर एम्बेसडर के रूप में एयर इंडिया और सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड की ओर से सिंगापुर के 4 दिनों के एम्बेसडोरिअल विजिट का मौका भी मिलेगा. इस प्रतियोगिता के कर्ता-धर्ता श्री सुब्रोतो घोषाल थे जो एयर इंडिया से जुड़े थे. इसके पीछे की इतनी बड़ी सोच भी उन्ही की थी. सौभाग्य से उस समय मैं कार्मल कॉन्वेंट स्कूल में कंप्यूटर साइंस में पीजीटी टीचर थी. इस विज्ञापन को देखते ही मुझे साढ़े चार साल पहले की कही अपनी बात याद आ गई. ईश्वर ने रास्ता दिखा दिया था, मुझे सिंगापुर ले जाने का. वरना किसी और जगह का नाम या कोई और पुरस्कार भी हो सकता था. मैंने कहा – “मैं जा रही हूँ सिंगापुर”. घर वालों ने कहा – “एक ही को जाने को मिलेगा, सिर्फ राज्य स्तरीय विजेता को. फिर भी तुम इतनी कॉंफिडेंट हो?” प्रत्युत्तर में मैंने कहा, “मैं भी तो एक ही हूँ फिर मैं ये क्यूँ सोचूँ कोई और “एक” इसका विजेता होगा? मैं क्यूँ नहीं?”

इतना बड़ा पुरस्कार था – सिंगापुर जाना, वहां पांच सितारा होटल में ठहरना, नाश्ता खाना, सिंगापुर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों का भ्रमण.... इसकी कीमत कम से कम डेढ़ दो लाख तो आंकी ही जा सकती थी. सम्मान मिलेगा वो अलग. ज़ाहिर है इतनी बड़ी प्रतियोगिता थी तो कठिन भी उतनी ही थी. जिला स्तर के लिए लिखित मुकाबला था जिसमें साधारण प्रश्न न होकर आपकी शिक्षण के अनुभव से सम्बंधित गूढ़ प्रश्न थे जिससे आपके और शिक्षक के रूप में आपकी भूमिका के बारे में पूरी एनालिसिस हो जाये. कहना नहीं होगा कि प्रश्न बहुत टेढ़े थे और बहुत ही सच्चा जवाब चाहते थे. कुछ समय दिया गया था प्रश्नों के जवाब भेजने का. लिखित जवाब के आधार पर कुछ प्रतियोगियों का चयन किया गया जिन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया, जिनमें सौभाग्य से मैं भी थी. मेरा साक्षात्कार करीब 1 घंटे तक चला. मुझे और मेरे ज्ञान और अनुभव को पूरा खंगाला गया. कहीं भी कोई कसर नहीं रखी गयी आपको उड़ने देने से रोकने में. आप कुछ भी झूठा नहीं दर्शा सकते थे. साक्षात्कार के बाद मैं संतुष्ट थी. मेरा भरोसा अब भी डिगा नहीं था. मेरा बच्चों को पढ़ाना, उनके साथ का अनुभव, उनके मनोविज्ञान को समझने का अनुभव और खुद भी शिक्षण के साथ आगे की पढाई से जुड़े रहने का अनुभव पॉजिटिव रूप से इस साक्षात्कार में काम आया. मेरे इस भरोसे ने रंग दिखाया. मैं भोपाल से “विनर” चुनी गयी. अब मध्य प्रदेश के सभी जिला स्तरीय विजेताओं में से एक राज्य स्तरीय विजेता चुना जाना था. उसी भाग्यशाली विजेता को सिंगापुर जाने का मौका मिलने वाला था. लेकिन अब कोई लिखित परीक्षा या साक्षात्कार नहीं होना था बल्कि सभी जिला स्तरीय विजेताओं में से जिसके भी सबसे अधिक अंक आये थे उसे ही राज्य स्तरीय विजेता घोषित किया जाना था.  मेरा खुद पर भरोसा अब भी कायम था और फिर से इस भरोसे ने रंग दिखाया. मैं राज्य स्तरीय विजेता चुनी गयी. इसकी सूचना हमें श्री आशीष जोशी जी से मिली, जो नवभारत से जुड़े थे और  मध्य प्रदेश से इस प्रतियोगिता का संचालन कर रहे थे. मेरा सिंगापुर जाने का सपना सच होने वाला था. ईश्वर ही ले जा रहा था मुझे, एयर इंडिया और सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड को माध्यम बना कर. उस समय की अपनी ख़ुशी को शब्दों में बांधना मुश्किल है.

जिला स्तरीय विजेता का कम्युनिकेशन 

राज्य स्तरीय विजेता का कम्युनिकेशन

अखबार में नाम

मेरे लिए ये सिर्फ सिंगापुर की यात्रा ही नहीं थी, बल्कि पहली हवाई यात्रा भी थी. वो भी सिर्फ देश के अन्दर नहीं, बल्कि विदेश में भी.

पहली बार पासपोर्ट बनवाया, वो भी तत्काल. टिकट का तो कुछ करना नहीं था, टिकट के साथ साथ वीसा का इंतजाम भी एयर इंडिया वालों ने करवाया. सिंगापुर में किन नियमों का पालन करना है, उसकी सूची और सारा कार्यक्रम और उसकी रूपरेखा हमें भेजी गयी. मुझे भोपाल से मुम्बई जाना था और भारत के सभी राज्यों के विजेताओं को अपने अपने राज्य से मुम्बई या चेन्नई आना था. वहां से हमें सिंगापुर के लिए प्रस्थान करना था. बचपन से तमन्ना थी मुम्बई भी देखने की, क्यूंकि मैं फिल्मों की बहुत दीवानी थी और मुम्बई फिल्म कलाकारों का बसेरा था. वो तमन्ना भी अभी ही पूरी होने वाली थी. कहते हैं न, ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है. बहुत सारे नए अनुभव होने वाले थे. सबसे बड़ा अनुभव था अकेले विदेश यात्रा का.

अक्टूबर का महीना था, तारीख थी 5. भोपाल से शाम की फ्लाइट से मैं दो घंटों में मुंबई पहुँच गयी. हम सभी वहां एक तीन सितारा होटल में ठहरे. हम तीस विजेता थे और साथ साथ हर राज्य से एक एक जर्नलिस्ट भी जो हमारी पूरी यात्रा और अनुभव को कवर कर सकें. हमारे साथ श्री आशीष जोशी जी थे. हम सभी को एयर इंडिया की तरफ से जैकेट और आईडी कार्ड दिया गया जिसे हमें पूरे भ्रमण के दौरान पहने रखना था, साथ साथ कुछ हिदायतें भी जिसका सख्ती से पालन हमें सिंगापुर में करना था. अगले दिन सुबह 6 बजे मुंबई से सिंगापुर की फ्लाइट थी.  

हमारी फ्लाइट इटेरिनरी

सुबह करीब 3 बजे ही हम इंटरनेशनल एअरपोर्ट पहुँच गये. हवाई यात्रा के साथ साथ सिक्यूरिटी चेक, इमीग्रेशन, करेंसी एक्सचेंज सभी का अनुभव बिलकुल नया था. मुम्बई से सिंगापुर की फ्लाइट बहुत ही बड़ी थी. बहुत ही आरामदायक. हम एयर इंडिया के मेहमान थे, विजेता भी और अपने अपने राज्य के एम्बेसडर भी इसीलिए फ्लाइट में हमारा बहुत ही अच्छा स्वागत हुआ. हमारे बारे में उनके पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर उद्घोषणा की गयी. यात्रा के दौरान हमें तीन-तीन करके कॉकपिट में भी बुलाया गया और विमान के उड़ान के कंट्रोल्स के बारे में बताया गया. जब मुझे बुलाया गया तब हम भारत के उस समय के दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट के ऊपर से उड़ रहे थे.

कॉकपिट में, इंदिरा पॉइंट के ऊपर उड़ते हुये

फ्लाइट में बीच में एक बड़ा सा स्क्रीन लगा था. उसपर हमने “गायब” पिक्चर भी देखी. मुंबई से सिंगापुर की करीब सात घंटे की उड़ान थी और सिंगापुर का समय भारतीय समय से ढाई घंटे आगे. सिंगापुर एक अलग ही दुनिया थी. वहां का चांगी एअरपोर्ट तो ऐसा लग रहा था मानों हम स्वर्ग में उतर गये हों. सिंगापुर यात्रा का वर्णन किसी और ब्लॉग में करुँगी. अभी विषय से नहीं भटकते हैं. 


 
सिंगापुर

सिंगापुर का अनुभव बहुत ही अच्छा था. पतिदेव ने जो भी कहा था सब अक्षरशः सत्य था. हम वहां से 9-10 अक्टूबर की दरमियानी रात को 2 बजे मुंबई लौटे. फिर से उसी होटल में ठहरे. हमारे पास 10 तारीख को दोपहर तक का समय था क्यूंकि उस दिन शाम में भोपाल के लिए फ्लाइट थी. उस दिन मुम्बई घूमने का प्लान बनाया और घूमें भी. अमिताभ बच्चन का बंगला तो देखना ही था और उसके सामने फोटो खिंचवा कर बरसों का सपना भी पूरा किया.

AGM SBI की ओर से टेस्टीमोनियल

सिंगापुर से लौटने के बाद पुरस्कार वितरण के लिए भव्य आयोजन किया गया. सभी जिला और राज्य स्तरीय विजेता और उप विजेता को पुरस्कार मिलना था. मुझे आज भी याद है कैसे मैं जर्नलिस्ट के बीच में घिर गयी थी. मेरा परिवार और मेरी प्रिंसिपल सिस्टर ऐन्सिला भी वहां आई थी. मेरा स्थान डायस पर था, एक वीआईपी की तरह और मुझे सिंगापुर के अपने अनुभव को साझा करने का आमंत्रण भी मिला था. अनुभव साझा करने के दौरान मैंने पोडियम के सामने राखी एक बहुत बड़ी ट्रॉफी देखी. उसकी चमक आँखों में बस गयी. पता किया तो बताया गया, ये अगले साल इसी प्रतियोगिता के नेशनल विनर को मिलेगा. यानि.. ओह्ह.. इस साल तो ये प्रतियोगिता सिर्फ राज्य स्तर तक ही थी. मतलब हम तो नेशनल विनर हो ही नहीं पाएंगे. सोचने लगी, इस साल क्यूँ भाग लिया प्रतियोगिता में, अगले साल ही ले लेती. पर मुझे क्या पता था ऐसा कुछ होने वाला है.

राज्य स्तर विजेता होने की और सिंगापुर जाने के आपने अरमान पूरे होने की ख़ुशी पर यह सोच हावी हो गयी. अब अपने आप को राष्ट्रीय स्तर पर साबित करना और पुरस्कार जीतना ध्येय हो गया. पहले ईश्वर पर अपनी आशा को पूरा करने का दायित्व छोड़ा था अब खुद पर विश्वास और कुछ कर दिखाने का जज्बा कुलांचे भरने लगा. यही है इंसान का असली स्वरुप. जितना मिले उतना कम है. हमेशा और पाने की इच्छा एवं और ऊँचाइयाँ छूने की आकांक्षा हिलोरें लेती रहती है. पर यही तो है वो जो हम में नयी उर्जा का संचार करके हमें नया मुकाम पाने को प्रेरित भी करती है.

राज्य स्तरीय अवार्ड और मेरा संभाषण-इसी समय मैंने राष्ट्रीय पुरस्कार की ट्रॉफी देखी
आप भी देखिये

कोशिश करने में क्या हर्ज़ है, लिहाजा मैंने भी एयर इंडिया के सबसे ऊँचे पद पर आसीन अधिकारी को एक पत्र लिख डाला. उनसे विनती की कि अगले साल के नए राज्य स्तरीय विजेताओं के साथ हमें भी राष्ट्रीय स्तर के प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका दिया जाये. ये भी लिखा कि “वर्ना हम अपने आप को कोसते रहेंगे कि हमने इस साल इस प्रतियोगिता में भाग क्यूँ लिया. जो हुआ उसमें हमारी क्या गलती थी भला?”

मैंने एयर इंडिया को जो पत्र लिखा

कहते हैं न “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती”. हमारी भी नहीं हुयी. हमारी बात सिर्फ एक बार के लिए मान ली गयी. एक सामाजिक कार्य भी हो गया यानि सिर्फ मेरे ये एक कदम उठाने के कारण सभी 30 विजेताओं का भला हो गया.

एयर इंडिया का जवाब


मुझसे कन्फर्मेशन

लेकिन अब प्रतियोगिता और भी कठिन थी. इसीलिए कि अब ये राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता थी और इसीलिए भी क्यूँकि अब हमें 30 से नहीं बल्कि 60 प्रतियोगियों से प्रतियोगिता करके अपने आप को साबित करना था-30 अपने साथ वाले और 30 नये.

लेकिन 2005 में प्रतियोगिता नहीं हो पाई. मुंबई में भयंकर बाढ़ के कारण. इसीलिए हमें 2 साल का इंतज़ार करना पड़ा यानि 2006 तक.

प्रतियोगिता का स्वरुप वही था. लेकिन राष्ट्रीय स्तर के लिए हमें फिर से एक और राउंड के लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में भाग लेना था. इस बार प्रश्नों का स्तर बहुत ही कठिन था. पता नहीं किसने प्रश्न बनाये थे. स्कूल कॉलेज में होते तो कह देते – सिलेबस के बाहर. लेकिनं यहाँ तो “ओखल में सिर डाल दिया था तो मूसल से क्या डरना” वाला मामला था.

बहुत ध्यान से, सोच समझ कर सच्चाई से उत्तर देना था. जितना हो सकता था सोचा और उत्तर लिख कर भेजा. किस्मत से इस बार फिर साक्षात्कार के लिए चयन हो गया. किसी ने जादू की छड़ी घुमाई थी. ईश्वर काफी प्रसन्न था. और तो और मुंबई दर्शन की जो चाहत पिछली बार पूरी हुयी थी, इस बार और भी बड़े रूप में पूरी होने वाली थी क्यूंकि इस बार साक्षात्कार के लिए हमें मुंबई बुलाया गया था.

होटल इंटरकांटिनेंटल ग्रैंड में ठहरने का इंतजाम था. सिंगापुर के पांच सितारा होटल में तो ठहरी ही थी और वो मेरा पहला अनुभव था पांच सितारा होटल में रुकने का. हाँ, एक दो बार डिनर जरूर किया था ऐसे होटल में. इस बार ये भारत का पांच सितारा होटल था और मैं यहाँ दो दिनों तक रुकने वाली थी. 13000/- एक दिन का रूम चार्ज बताया गया था. सभी सुविधाओं से परिपूर्ण. एक रूम में ही टीवी, माइक्रोवेव, फ्रिज, कोल्ड ड्रिंक्स, फ़ोन, फल, स्नैक्स, चाय, कॉफ़ी, बाथरोब, प्रेस, शैम्पू, टूथब्रश, टूथ पेस्ट, बॉडी वाश, तौलिये, मॉइस्चराइजर, गोल्फ स्टिक, स्लिपर्स, कितनी सुविधाएं थी. खुद के पैसे से कहाँ से होता ये सब? अभी तक मूवीज में ही देखी थी इतनी शानो-शौकत. ईश्वर की तरफ से एक तरह का राजयोग ही था ये.

हमारा साक्षात्कार एयर इंडिया बिल्डिंग में था. उस समय ये मुंबई का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हुआ करता था. मरीन ड्राइव के सामने. पहले तो हमें वहां के सबसे ऊंचे माले की सैर करायी गयी और वहां से मरीन ड्राइव दिखाया गया. फिर अपने अपने फ्लोर पर भेज दिया गया, जहाँ साक्षात्कार होना था.

कई पैनल्स बने थे. प्रत्येक पैनल 4 लोगों का. सभी पैनलिस्ट अपने अपने क्षेत्र के नामी गिरामी हस्ती. एक पैनल में श्री अमीन सयानी भी थे जिनकी बिनाका गीत माला सुनकर हम बड़े हुए थे. उनकी आवाज़ और बोलने की शैली के कायल थे हम सब. लेकिन मुझे वो पैनल नहीं मिला था.

ये साक्षात्कार भी करीब एक घंटे चला. बहुत कुछ पूछा गया, बहुत कुछ बोला भी हमने. इस बार सिंगापुर के बारे में भी सवाल थे कि कैसे और क्यूँ उस जगह ने हमें प्रभावित किया था. हमें वहां के न्यू वाटर प्लांट और किस तरह से सिंगापुर अपने पानी के आभाव को संभालता है, कैसे पानी और कचरे के मामले में रेड्यूस, रीयूज़ और रीसायकल को अपनाता है, वहां के सिविक सेंस और नियम पालन के बारे में बोलने का मौका मिला. पैनलिस्ट के अनुभवों को सुनने का भी मौका मिला और छोटी छोटी चीजों से कैसे बड़ी बड़ी सीख ली जा सकती है इसका अनुभव मिला. साक्षात्कार के बाद सकारात्मकता का ही अनुभव हो रहा था.

परिणाम निकला. 7 लोग चुने गये थे नेशनल अवार्ड के लिए. और इन विजेताओं में मैं भी शामिल थी नेशनल रनर अप के रूप में. इस बार भी इसकी सूचना हमें श्री आशीष जोशी जी से ही मिली. ये भी बहुत ही सुखद सूचना मिली कि हमें ये पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों मिलेगा और उस समय हमारे राष्ट्रपति थे हम सबके चहेते, पूजनीय, एक प्रख्यात वैज्ञानिक और एक उत्कृष्ट शिक्षक डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम.

दिल गदगद था. सबकुछ बड़ा अच्छा लग रहा था. कुछ वो मिल गया था जिसके बारे में कभी सोचा नहीं था और उनसे मिलने वाला था जो अकल्पनीय था. जाहिर है इस पुरस्कार को मिलने में समय लगना था क्यूंकि राष्ट्रपति जी से समय मिलना भी एक कठिन कार्य था.

18 जुलाई 2007 को राष्ट्रपति के रूप में महामहिम डॉ कलाम के कार्यकाल का आखिरी दिन था क्यूंकि 19 जुलाई को प्रेसिडेन्शिअल इलेक्शन था. और हमें तारीख मिली 17 जुलाई 2007 की. यानि कार्यकाल समाप्ति के ठीक एक दिन पहले. बहुत ही भाग्यशाली थे हम सभी. लेकिन एक और साल बीत गया था इस बीच.

पुरस्कार समारोह विज्ञान भवन, नयी दिल्ली में होना था. इस बार फिर पांच सितारा होटल में रुकने का सौभाग्य मिला. इस बार होटल था सेंटॉर, नयी दिल्ली.

हमें 7 पास भी दिए गये थे अपने परिवार के लोगों के लिए, जो इस फंक्शन को अटेंड करना चाहते थे. पहले से ही जानकारी ले ली गयी थी और पास पर उनके नाम थे. मेरे पतिदेव डॉ सुहास कुमार, मेरी बड़ी बेटी सुश्री स्वाति सुधा, मेरे जेठ डॉ संगीत कुमार, मेरी जिठानी श्रीमती रीता कुमार और मेरा सबसे छोटा भाई गौतम कुमार सिन्हा राष्ट्रपति के हाथों मेरे इस पुरस्कार ग्रहण के साक्षी बने. छोटी बेटी शान के कुछ अलग महत्वपूर्ण कमिटमेंट थे. वो नहीं आ पाई पर उसकी कमी बहुत खली क्यूंकि ऐसे मौके बार बार नहीं आते.

विज्ञान भवन में बहुत ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी. ज़ाहिर सी बात थी, देश के सर्वोच्च नागरिक, महामहिम राष्ट्रपति पधारने वाले थे. हमारे मोबाइल फ़ोन, कैमरा सब ले लिए गये थे. कहा गया कि फोटो ऑफिशियल फोटोग्राफर ही खींच सकते हैं. परिवार वालों को अन्दर बैठने का स्थान बताया गया. हमारे लिए सीट नियत थी. हमें वहां बिठा कर दो तीन बार प्रोग्राम का रिहर्सल करवाया गया. किस क्रम में और किस तरह से स्टेज पर जाना है, जब एक स्टेज पर पुरस्कार ग्रहण करने जायेगा तो उसके पीछे वाला कितनी दूरी पर रुकेगा, किस तरह से पुरस्कार ग्रहण करना है, उसके बाद स्टेज से उतरकर कहाँ बैठना है इत्यादि. ये भी बताया गया कि इसके बाद हमारे और परिवार वालों के लिए हाई टी का इंतज़ाम है उनके साथ. सख्त हिदायत दी गयी कि राष्ट्रपति जी से कोई बात करने की कोशिश नहीं करेगा. उनका समय बहुत कीमती है. हम सांस थामे उस घड़ी का इंतज़ार कर रहे थे जब हमारी प्रेरणा, हमारे पूजनीय राष्ट्रपति जी हमारे बिलकुल सामने होंगे. दिल की धड़कन तेज़ हो गयी थी. इतनी हिदायतों के बाद थोड़ा डर भी लग रहा था कि कहीं कोई चूक न हो जाये. इतनी बड़ी ख़ुशी थी, राष्ट्रीय पुरस्कार और वो भी राष्र्ट्रपति के हाथों, ऊपर से डॉ कलाम के हाथों मिलने जा रहा था. अपने आप पर गर्व भी हो रहा था वो भी दुगना, एक तो विजेता होने का और दूसरा इस बात का कि मैंने ही तो पत्र लिखा था हमें भी इस प्रतियोगिता में शामिल करने के लिए. अंदर कुछ उथल पुथल सी भी हो रही थी-डर, गर्व और इस अथाह ख़ुशी के सम्मिश्रण से.

विज्ञान भवन में पुरस्कार पाने का इंतज़ार करते हुए 

राष्ट्रपति जी बिलकुल नियत समय पर पधारे. सीधे, सरल, बिना किसी आडम्बर के वो हमारे सामने थे. सब कुछ अविश्वसनीय लग रहा था. प्रोग्राम शुरू हुआ. पुरस्कार ग्रहण करने वालों में सबसे पहला नंबर मेरा ही था. सहमते हुए स्टेज पर पहुँची. और ये क्या, पुरस्कार देते हुए कलाम जी ही मुझसे बात करने लगे, मेरे बारे में पूछने लगे और हमारी टीचिंग स्ट्रेटेजी के बारे में भी. कहने लगे वो हम गुरुओं का बहुत सम्मान करते हैं, ख़ास करके महिलाओं का. अब वो बातें कर रहे थे, सवाल पूछ रहे थे और मैं मंत्रमुग्ध होकर उन्हें जवाब दे रही थी, बहुत ही आह्लादित थी. शुरुआत उनकी तरफ से हुयी थी मैंने थोड़े ही पहल की. इसीलिए मैंने किसी भी हिदायत की अवहेलना नहीं की थी. और फिर ईश्वर मेहरबान था, तो इंसान की क्या बिसात. मैं बिलकुल मशगूल थी उनके प्रश्नों का उत्तर देने में और उन्हें ही देख रही थी(फोटो 1) और ये उन्होंने नोटिस किया. बहुत ही अच्छा लगा जब उन्होंने कहाँ “don’t just keep on looking this side, face towards the camera too. Otherwise you will miss the photograph”.(फोटो 2 और 3) कितना ध्यान था उन्हें और ये मालूम भी था कि हमें उनके साथ फोटो खिंचवाने की कितनी चाहत होगी. मैंने फोटोग्राफर की ओर देखा और “क्लिक”. एक बहुत ही यादगार फोटो खिंच गयी(फोटो 4).

फोटो 1

फोटो 2 

फोटो 3

फोटो 4

पुरस्कार स्वरुप हमें एक बड़ी सी ट्रॉफी और एक बहुत ही खूबसूरत सर्टिफिकेट दिया गया. जिनके हाथों ये सब मिला वो खुद अपने आप में एक बहुत ही बड़ा और अनमोल पुरस्कार था.

मुझे याद है, स्टेज पर मैंने उनके साथ 4-5 मिनट बिताये होंगे. वैसे पुरस्कार लेकर निकल आने में सिर्फ 30 सेकंड का समय लगता है. मेरे बाद शायद ही किसी को इतना समय मिला हो उस दिन उनके साथ. अगर आम रूप में कभी उनसे उतनी ही देर बात करना चाहती, तो शायद अपॉइंटमेंट लेने के लिए ही एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ जाता और उसके बाद भी अपॉइंटमेंट मिलता या नहीं उसकी भी कोई निश्चितता नहीं थी.

पुरस्कार समारोह और विज़न 2020 पर उनके विचारों के बाद हमें उनके साथ हाई टी के लिए जाना था. अंग्रेजी में कहावत सुनी थी “born with a silver spoon” और हिंदी में एक टंग ट्विस्टर भी “चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदनी चौक पे चांदी के चम्मच से चटनी चटाई”. और यहाँ हाई टी में सिर्फ चांदी के प्लेट्स, चम्मच और सर्विंग ट्रे ही दिख रहे थे. लेकिन सभी कुछ का स्वाद लिया जा सके ये मुमकिन ही नहीं था क्यूंकि स्नैक्स की वैरायटी तो इतनी थी कि पूछिए ही मत. बहुत ही यादगार था वो दिन, बहुत ही खुशनुमा और ज़िन्दगी की एक पराकाष्ठा, जीवन का उत्कर्ष. जहाँ पहुँचने की चाहत हर किसी को होती है. वो पा लिया था हमने. ईश्वर का एक वरदान. ईश्वर ने मेरी वो बात रख ली थी –“अब ऊपर वाला मुझे सिंगापुर ले जायेगा”. 

रात में छोटे भाई गौतम ने प्रेसिडेंट का वेबसाइट देखा. राष्ट्रपति के साथ मेरी तस्वीर सबसे पहले थी उसमें, वही तस्वीर जिसके लिए कलाम जी ने मुझे फोटोग्राफर को देखने को कहा था. वो लिंक दे रही हूँ आप भी देखिये.

http://abdulkalam.nic.in/sp180707.html

बहुत रात हो रही थी पर गौतम तुरंत उस तस्वीर को पेन ड्राइव में लेकर अपनी एक जान पहचान के स्टूडियो वाले के पास गया और आधी रात में स्टूडियो खुलवा कर उस तस्वीर का प्रिंट निकलवा कर लाया. 18 जुलाई को मेरा केंद्रीय विद्यालय में पीजीटी टीचर के पद के लिए साक्षात्कार था और ज़ाहिर सी बात थी कि ये तस्वीर उस साक्षात्कार के लिए एक मील का पत्थर साबित होने वाली थी. वैसे आपको बता दूं कि केंद्रीय विद्यालय के उस साक्षात्कार के बाद जो परिणाम घोषित हुआ उसमें मेरी ऑल इंडिया रैंकिंग 33 थी; 800 लोगों के बीच जिन्हें चुना गया था और फीमेल कैंडिडेट में मैं नवमें स्थान पर थी यानि कि मेरिट में.

आप सोच रहे होंगे कि फिर मैंने केंद्रीय विद्यालय की सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरी क्यूँ नहीं ज्वाइन की. उसकी भी एक कहानी है, बताऊँगी लेकिन किसी और ब्लॉग में.

अभी वापस लौटते हैं. देखते हैं इस पूरी प्रतियोगिता के दौरान क्या हुआ.

8 हवाई यात्रा, सिंगापुर विजिट, 3 बार पांच सितारा होटल में रुकने का मौका, जिला विजेता पुरस्कार, राज्य विजेता पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रपति के हाथ से पुरस्कार, उनसे बात करने का मौका, उनके साथ हाई टी, उनके वेबसाइट पर मेरी फोटो, लगभग सभी अख़बारों में हमारे ऊपर लेख, टीवी पर प्रोग्राम, कई साक्षात्कार, यानि कि अनायास प्रसिद्धि. सचमुच हम एकाएक मशहूर हो गये थे.

मैं इस ब्लॉग का समापन गोल्डा मायेर की इन पंक्तियों से करना चाहूंगी:

“Trust yourself. Create the kind of self that you will be happy to live with all your life. Make the most of yourself by fanning the tiny inner sparks of possibility into flames of achievement”

और आप सभी से कहना चाहूंगी:

Aspire to Inspire before you Expire






टीवी, वेबसाइट और अखबार में नाम


17 comments:

  1. Such a wonderful experience Mam.. Thank alot for sharing :)

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    1. You are welcome Alok. Thank you for going through.

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  2. You deserve all of it. I like your blog ..दिल को छूने वाली लिखने की शैली .पढ़ के लगा सामने बैठी तुम बोल रही हो और मैं सुन रही हूँ. तुम्हारी सिंगापुर जाने का पूरी कहानी रोचक, inspirational and interesting है .thanks for sharing. Waiting for ur next blog.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद किरण. मेरे 15 ब्लॉग्स और हैं. उन्हें भी पढ़कर देखो. अच्छा लगेगा.

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  3. Dear Aartiji
    Namaskar
    Very inspiring article. How precisely each and every detail is narrated after more than 15 years! Feeling proud to see all events in photographs. Keep writing success stories.

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    1. Thank you so much Haresh ji for reading the blog and for your appreciation. Yes, I remember everything because it was an unforgettable experience for me. More so, these are a few things I have been narrating to a few.

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  4. Loved reading every word of it. Full of enthusiasm and positivity.

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  5. I am honoured to work under your guidance maam,your blogs and words always inspires us

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    1. Thank you so much for reading the blog and for your sweet words.

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  6. Maam i read your blog today first thing in the morning and I m sure it will be my guiding light .I am Monika Nagal ,I was your student in Carmel but I didn't take up computer science as my 11th and 12th optional so you didn't teach me later on ,I was Swati s classmate .I am a mother of 2 kids now 7 and 5 and I had to leave my job when I got married but since then I have always found my self struggling to find my identity and that kept me leading to different ventures of teaching kids for tution then doing baking as profession and now started a youtube cooking channel when i read your blog i really feel hopeful that having kids and being full time home maker doesn't mean I still can't achieve something great .And I also love when you say Human tendency is such that nothing is ever enough .why we always want to keep achieving something better and bigger keep chasing what we don't have but then that's what keeps us alive like really happy and alive from inside .

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    1. Thank you Monika for reading the blog and I am happy that it inspired you. Everyday something or someone keeps inspiring us and we have to pick up those positive aspects and look forward. Positivism helps a lot and always plays a role in our success.It is also our feel good factor and morale booster. Keep the spark burning inside you and you will do wonders. You are unstoppable and whether it is your daily tiring chores or children, you need to take time at least for one hour only for yourself. You will not get this time, you will have to steal it.
      I have loved accepting challenges and have never been disheartened by "no" by someone. I suggest you to go through my other 15 blogs here. All are my life stories and will certainly inspire you. Especially, "Ye mat kaho khuda se", "tum na jane kis jahan mein kho gayi" and "paidal se ignis tak".
      Congratulations for your youtube channel. Please let me know the name of your channel. Mine is "Samay Kam Swad Uttam"

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  7. 🙏🏻🙏🏻🙌🏻🙌🏻

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