क्या उन्हें भगवान ने भेजा था या वो ईश्वर का ही स्वरूप थे?
कभी कभी कुछ बातें सिहरन पैदा कर देती हैं.. ऐसा ही कुछ कल हुआ..
कल अचानक दिल के अंदर से आवाज़ आई, चलो भोजपुर चलते हैं। भोजपुर का इतिहास बहुत पुराना है और यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, एक ऐतिहासिक धरोहर। यहाँ पहाड़ी पर एक बहुत ही प्राचीन शिव मंदिर है और उसी के कारण यह बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर में एक विशालकाय शिवलिंग है जो सिर्फ एक पत्थर को तराश कर बनाया हुआ है।
मेरा विश्वास कीजिये, भोजपुर जाने के पीछे ये मैंने कभी नहीं सोचा था कि कल का दिन क्योंकि सोमवार था, शिव का दिन था, इसीलिए मुझे शिव जी का दर्शन करना चाहिए। सच तो ये है कि जब से नौकरी छोड़ी है, मेरे लिये तो हर दिन इतवार है😅😅। लेकिन घर से निकलते निकलते ध्यान आया कि अरे आज तो सोमवार है। लगा, शिव जी ने ही मुझे बुलाया है। वरना मेरी आस्था भगवान में तो हद से ज्यादा है लेकिन मंदिर और पूजा पाठ से मैं कुछ दूर ही हूँ। ईश्वर के स्पेशल इन्विटेशन पर ही मैं उनके धाम पहुंचती हूँ। अब उनका ही मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट हूँ तो वो ही झेलेंगे न।
खैर, हम पहुँच गये उनके दरबार। ऐसे ही दर्शन करना था पर भाई पहली ही दुकान से पता नहीं कैसे फूल, बेलपत्र, धतूरा, नारियल और प्रसाद की एक टोकरी भी ले ली। उसमें आक का फूल नहीं दिखा तो वो भी एक और दुकान वाले से मांग लिया, यानि सब अपने आप होता चला गया और टोकरी कंप्लीट हो गयी।
अब चढ़ाई चढ़ कर मंदिर परिसर में पहुंचे तो ढेर सारे लंगूर, जिन्हें हम आम भाषा में हनुमान बोलते हैं, वो मिल गये। यहाँ मैं बता दूँ कि ये बंदर से अलग होते हैं, बंदर लाल मुँह, छोटी पूँछ वाले और शेप विहीन होते हैं, साथ साथ बहुत आक्रामक होते हैं। ये काले चेहरे वाले, लंबी पूँछ वाले, स्लिम और ट्रिम एवं थोड़े शांत होते हैं। पर यहाँ तो ये सभी से टोकरी छीन रहे थे। सब उनसे गुहार लगा रहे थे कि अभी छोड़ दो, प्रसाद चढ़ा कर आ जाएँ तब देंगे तुम्हें, पर नहीं। मुझसे भी एक ने टोकरी छीनने की कोशिश की पर मैंने उसे कुशलता से बचा लिया। विजयी मुस्कान बिखेरते हुये आगे चल पड़ी पर मेरी ये खुशी, मेरे चेहरे की मुस्कान और विजय का दर्प क्षणभंगुर थे क्योंकि अगले कुछ पलों के अंदर ही पीछे से आकर एक हनुमान ने बहुत तेजी से मेरी टोकरी को झपटा और वो नीचे गिर पड़ी। परम प्रिय हनुमान जी फूल खाने लगे। हमने नारियल और प्रसाद(चिरोंजी) का प्लास्टिक वाला डब्बा उठा लिया और मैं शिव जी से शिकायती लहजे में बुद्बुदायी, बुलाया था, टोकरी दिलवाई थी, तो फूल प्रसाद क्यों नहीं चढ़ाने दिया? शिव जी की जगह हनुमान जी ने सब क्यों लिया? और कहा अब तो यही नारियल और प्रसाद चढ़ाऊँगी तुम्हें, बाकी तुम जानो।
अब देखिये आगे क्या होता है..
आठ दस कदम ही आगे बढ़ी थी कि एक पति पत्नी हाथ में फूलों और प्रसाद से भरी टोकरी लिये हमारे पास से गुजरे। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनकी टोकरी सही सलामत थी और उसपर हनुमान जी की कृपा नहीं बरसी थी। मैंने कौतूहल वश पूछ ही लिया.. आप कैसे बच गये, आप पर हनुमान जी ने कृपा नहीं की? मेरी तो टोकरी छीन कर गिरा दी इनमें से एक ने, एक भी फूल बेलपत्र नहीं बचा😔। उन्होंने कहा आप मेरी टोकरी से फूल ले लीजिये। और उन्होंने अपनी टोकरी से ढेर सारे फूल बेलपत्र मेरी टोकरी में डाल दिये😊😊। कौन थे, कैसे आये, उनका फूल कैसे बचा, जबकि उसे ढांक कर भी नहीं चल रहे थे, ये सब एक रहस्य था हमारे लिये।
खैर, पूजा संपन्न हुई। चिलचिलाती धूप और अत्यंत गर्मी में 20 जनवरी भी मार्च अप्रैल जैसा लग रहा था।सूर्य की ठीक सामने से आती किरणों के कारण आँखें ठीक से खुल कर देख भी नहीं पा रहीं थी फिर भी हमने ढेर सारे फोटो वीडियो लिये और वापस चल पड़े। घर आकर मैंने फिर वही बात छेड़ी.. भोलेनाथ से वही शिकायत.. जब बुलाया था, वो भी सोमवार को.. तो मेरी टोकरी क्यों छिनवायी, क्यों नहीं पहुँचने दिया अपने पास?
और पतिदेव ने जवाब दिया.. अरे तुम्हें तो दो का आशीर्वाद मिला.. हनुमान जी का तो मिला ही और शिव जी ने भी तुम्हें फूल भिजवा दिया अपनी पूजा के लिए, वो जोड़ा निमित्त बना, ईश्वर का भेजा हुआ दूत बना, वरना कौन किसको अपने आप फूल बेलपत्र देता है। तुम्हारी टोकरी तो पूरी भर दी। और सोचो, उनकी खुली टोकरी क्यों नहीं छिनी जबकि सबकी छिन रही थी। एक बार सोचो कौन थे वो दोनों??? 🤔🤔🤔🙄🙄🙏🙏
जय भोलेनाथ 🙏🙏
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