आज व्हाट्स एप्प पर एक मैसेज आया
“बचपन में हिंदी
में “ञ” पढ़ा था ...
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आज तक समझ नहीं आ
रहा कि इसका इस्तेमाल कहाँ करूँ?
इसी मैसेज ने
मुझे ये ब्लॉग लिखने के लिये प्रेरित किया. आज मैं अपने इस ब्लॉग के जरिये इस
दुविधा को दूर करने की कोशिश करती हूँ.
खास कर ‘ङ’ और ‘ञ’ का उपयोग और महत्व समझाने के लिये और हर वर्ग के अंतिम वर्ण
का उपयोग भी बताने में अनुस्वार बहुत ही महत्वपूर्ण है.
अगर किसी अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा हो तो वो अनुस्वार उस अक्षर के बाद वाले
अक्षर के वर्ग के आखिरी वर्ण का आधा इंगित करता है. जैसे अंडा में ‘अ’ के ऊपर
अनुस्वार है और उसके बाद का अक्षर ‘ड’ है तो ये अनुस्वार ‘ड’ वाले वर्ग का आखिरी
वर्ण, यानि ‘ट ठ ड ढ ण’ में से आखिरी वर्ण ‘ण’ के आधे को इंगित करता है. कुछ और उदहारण इस प्रकार हैं:
अंगद, पंकज, शंकर, गंगा - अनुस्वार वाले
अक्षर के बाद का वर्ण [क ख ग घ ] से एक है. इसीलिए अनुस्वार इस वर्ग के आखिरी वर्ण
‘ङ’ का आधा इंगित करेगा, यानि अङ्गद, पङ्कज, शङ्कर, गंङ्गा.
अंचल, संजय, संचय, व्यंजन, चंचल, खंजर,
पिंजरा - अनुस्वार वाले अक्षर के बाद का वर्ण [च छ ज झ ] में से एक है. इसीलिए अनुस्वार
इस वर्ग के आखिरी वर्ण ‘ञ’ का आधा इंगित करेगा, यानि अञ्चल, सञ्जय, सञ्चय, व्यंजन, चञ्चल, खञ्जर, पिञ्जरा.
कंटक, दंड, कंठ - अनुस्वार वाले
अक्षर के बाद का वर्ण [ट ठ ड ढ] में से एक है. इसीलिए अनुस्वार इस वर्ग के आखिरी
वर्ण ‘ण’ का आधा इंगित करेगा, यानि कण्टक, दण्ड, कण्ठ.
अंत, मंथन, चंदन, बंदर - अनुस्वार वाले अक्षर के बाद का
वर्ण [त थ द ध] में से एक है. इसीलिए अनुस्वार इस वर्ग के आखिरी वर्ण ‘न’ का आधा
इंगित करेगा, यानि अन्त, मन्थन, चन्दन, बन्दर.
कंपन, संभव, चंबल - अनुस्वार वाले अक्षर के बाद का वर्ण [प
फ ब भ] में से एक है. इसीलिए अनुस्वार इस वर्ग के आखिरी वर्ण ‘म’ का आधा इंगित
करेगा यानि कम्पन, सम्भव, चम्बल.
शायद अब समझ आया होगा ‘ङ’ और ‘ञ’ जैसे वर्णों का प्रयोग अनुस्वार के रूप में.
वैसे भी हर व्यंजन में स्वर तो है ही.
दोष आज कल के बच्चों का नहीं है अपितु दो अन्य कारण हैं इसके पीछे. एक तो हमने
हिंदी भाषा का प्रयोग करना नहीं के बराबर कर दिया है और शायद तभी तक करते हैं जब
तक हमारी स्कूली शिक्षा का वो विषय रहता है. अंग्रेजी बोलने में हम अपनी शान समझते
हैं और हिंदी बोलने में अपनी हेठी. हिंदी बोलेंगे भी तो किसी वाक्य को पूरा करने के
लिये हमें अंग्रेजी शब्दों का सहारा लेना पड़ता है क्यूंकि अंग्रेजी के शब्द आजकल
हमारी आम बोलचाल की भाषा का एक अभिन्न अंग बन गये हैं. टैक्सी ड्राइवर को बोलो “दायें
मोड़ो” और वो नहीं समझेगा पर जैसे ही राइट कहो वो तुरंत दाहिनी ओर मुड़ जायेगा.
दूसरा बहुत बड़ा कारण है पढ़ाने का तरीका. आज हमारे बच्चे ‘क वर्ग’, ‘च वर्ग’ पढ़ते
हैं. पहले हमें इन वर्गों को मुख में जीभ के स्पर्श के उच्चारण के माध्यम से समझाया
जाता था. ‘कि’ और ‘की’ या ‘उ’ या ‘ऊ’ के प्रयोग में कभी ग़लती ना हो इसे भी उच्चारण
के माध्यम से ही समझाया जाता था. हम जब पढ़ते थे तो हमारे लिये उच्चारण में स्पर्श
हुये मुखभाग के आधार पर ‘श’, ‘ष’ और ‘स’ विभक्त किये गये थे और उन्हें क्रमशः तालव्य
‘श’(बोलते समय जीभ द्वारा कठोर तालू का स्पर्श), मूर्धन्य ‘ष’(बोलते समय जीभ
द्वारा मूर्धनि का स्पर्श), वर्त्स्य या दंत ‘स’(बोलते समय जीभ द्वारा दांत के ऊपर के ‘वर्त्स्य (alveolar)’ हिस्से का स्पर्श) कहकर पढ़ाया जाता पर अब वो ‘श’
शलगम का, ‘ष’ षट्कोण का और ‘स’ साइकिल का, कहकर पढ़ाया जाता है.
क्या कहूँ? हिंदी हममें से कई लोगों की मातृभाषा भी है और हमारी राष्ट्रभाषा
भी, पर हमारी पसंदीदा भाषा बिल्कुल नहीं. शायद इसीलिए हमने इसपर कभी कोई ध्यान
नहीं दिया. इस भाषा के प्रति हमारा व्यवहार सौतेला और तिरस्कारपूर्ण ही रहा.
बस एक अनुरोध जरूर करुँगी, एक बार आप हिंदी के सारे व्यंजनों का उच्चारण कर के
जरूर देखिये. बहुत ही दिलचस्प लगेगा. देखिये किस तरह वर्गों के विभाजन में जिह्वा
के स्पर्श का हाथ रहा है. देखिये किस तरह एक वर्ग के पाँचों वर्णों का उच्चारण जीभ
के मुख के एक ही हिस्से के स्पर्श से होता है (2 वर्णों के अपवाद को छोड़कर) और किस
तरह 'प' वर्ग के सारे अक्षर दोनों होठों को मिलाकर ही बोले जा सकते हैं.
अपने प्रयोग के बाद कौन सा वर्ग मुख के किस हिस्से से जीभ के स्पर्श से बोला
जा सकता है, मुझसे भी जरूर साझा कीजियेगा.
मैंने भी कई लोगों को यह सिखाया है! लिखते समय मेरी कोशिश रहती है कि इसी तरह अनुनासिक शब्दों को लिखूँ! अच्छी जानकारी!
ReplyDeleteतुम्हारा ये कहना मेरे लिये बहुत बड़ी प्रशंसा है. दरअसल हिदी भाषा बहुत ही रोचक है पर लोग इसमें उतनी रूचि नहीं दिखाते.
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteआपने जितनी सुंदर तरीके से समझाया है ,सराहनीय है l बोलने मैं हम हमेशा सही अनुस्वार का प्रयोग करते हैं पर उसके पीछे इतना सुंदर विज्ञान होगा यह जाना l
ReplyDeleteआपने इसे पढ़ा इसके लिए आपका मैं ह्रदय से धन्यवाद करती हूँ और आपने मेरे इस लेख को सराहा ये मेरा सौभाग्य है. मेरे और भी लेख हैं इस ब्लॉग में. मेरा आग्रह है कि जब भी आपको समय मिले, आप उसे भी पढ़ें.
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